जैनाचार की वैज्ञानिकता: पर्यावरण सुरक्षा एवं संतुलन के सन्दर्भ में

Authors

  • हिरांशी जैन बी.टेक बायोटेक्नोलॉजी, एसआरएम इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, चेन्नई
  • सुनीता सियाल एसोसिएट प्रोफेसर एवं हिंदी विभागाध्यक्ष, सोफिया गर्ल्स कॉलेज (स्वायत्त), अजमेर

DOI:

https://doi.org/10.48165/pimrj.2025.2.2.7

Keywords:

जैन आचार, वैज्ञानिकता, पर्यावरण सुरक्षा, पंच प्राकृतिक घटक, अहिंसक वृत्ति, प्रदूषण के दुष्परिणाम, श्रावकाचार पालन

Abstract

जैन दर्शन के सिद्धांत प्रकृति की सुरक्षा की कोरी चर्चा मात्र नहीं करते, बल्कि प्रकृति-संरक्षण को जीवन में व्यावहारिक रूप से अपनाने का सुंदर मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। पर्यावरण सुरक्षा से स्वच्छ और सुरक्षित जीवन सुनिश्चित होता है, वहीं पर्यावरण विनाश से आत्म-विनाश निश्चित होता है। इसलिए आज यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। पर्यावरण मुख्यतः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और आकाश से निर्मित होता है। यदि ये तत्व दूषित हो जाएं तो पर्यावरण भी दूषित हो जाता है, और यदि ये संरक्षित रहें तो पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

वैदिक दर्शन में भी जल व अग्नि आदि को दिव्य तत्वों के रूप में स्वीकार किया गया है – जैसे कि “आपो देवता”, “अग्नि देवता”। वहीं, जैन दर्शन में इन तत्वों में जीवों का अस्तित्व माना गया है और उनके सम्मान की बात विभिन्न स्थलों पर की गई है। सभी जीव एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और एक-दूसरे को सुख पहुंचाकर ही सुखी बना सकते हैं। प्रभु महावीर ने अपने आगमों में इसी बात पर विशेष बल दिया है – ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’। दूसरों को दुखी करके स्वयं सुखी नहीं रहा जा सकता – यही जैन दर्शन का शांतिपूर्ण और वैज्ञानिक सिद्धांत है।

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Published

2025-06-25

How to Cite

जैनाचार की वैज्ञानिकता: पर्यावरण सुरक्षा एवं संतुलन के सन्दर्भ में. (2025). Prakriti - The International Multidisciplinary Research Journal , 2(2), 43-51. https://doi.org/10.48165/pimrj.2025.2.2.7