कृष्णा सोबती के उपन्यासों में व्यक्त नारी अवधारणाएं

Authors

  • सुनीता सियाल एसोसिएट प्रोफेसर एवं हिंदी विभागाध्यक्षा सोफिया गर्ल्स कॉलेज (स्वायत्तशासी), अजमेर

DOI:

https://doi.org/10.48165/pimrj.2025.2.1.15

Keywords:

संघर्षों से जूझती नारी, परिवार के कायदे कानून, अतृप्त काम-भावना, नारी का उन्मुक्त रूप, बलात्कार की समस्या, स्त्री-पुरुषों के बदलते संबंध

Abstract

कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यासों ‘डार से बिछुड़ी’, ‘मित्रों मरजानी’, ‘सूरजमुखी अंधेरे के’ में स्त्री को एक उन्मुक्त रूप में प्रस्तुत किया है, जो उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने नारी को साहस के साथ चित्रित किया और काम-संबंधों को एक सहज शारीरिक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया। उनके विचारों के अनुसार, विवाह एक अनावश्यक बंधन हो सकता है, जो व्यक्तित्व के विकास को रोकता है। विवाह पूर्व और विवाहेत्तर संबंधों को उन्होंने नैतिक-अनैतिक के बजाय स्वाभाविक माना है। लेखिका का यह दृष्टिकोण उनके उपन्यासों को नवीन कथ्य प्रदान करता है और उनके पात्रों को साहसिकता और मानवीयता से भरपूर बनाता है। उन्होंने नारी की बदलती धारणाओं और मान्यताओं को सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है।

References

हिन्दी उपन्यासों में नारी की परिकल्पना - डॉ. सुरेश सिन्हा, पृष्ठ 44

कृष्णा सोबती का कथा साहित्य एवं नारी समस्याएं - डॉ. शहेनाज ज़ाफर बासमेह, पृष्ठ 172

मित्रों मरजानी - कृष्णा सोबती, परिचय

मित्रों मरजानी - कृष्णा सोबती, पृष्ठ 20

काम संबंधों का यथार्थ चित्रण और समकालीन हिंदी कहानी - डॉ. वीरेंद्र सक्सेना, पृष्ठ 285

‘सूरजमुखी अंधेरे के’ - कृष्णा सोबती, पृष्ठ 21

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Published

2025-02-22

How to Cite

कृष्णा सोबती के उपन्यासों में व्यक्त नारी अवधारणाएं. (2025). Prakriti - The International Multidisciplinary Research Journal , 2(1), 120-127. https://doi.org/10.48165/pimrj.2025.2.1.15